वाराणसीः विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि मंदिर हमारी संस्कृति और इतिहास के रखवाले हैं और मोदी सरकार का पूरा ध्यान दुनिया में भारत की समृद्ध परंपराओं के निर्माण, पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापन पर है। रविवार को 'काशी तमिल संगमम' के आयोजन की श्रृंखला में 'समाज और राष्ट्र निर्माण में मंदिरों का योगदान' विषय पर अपने संबोधन में विदेश मंत्री ने कहा कि 'हमारे पीछे मंदिरों की उपेक्षा' का युग रहा है। उन्होंने कहा कि इतिहास का पहिया अब घूम रहा है, यह लौट रहा है, यह भारत का उदय है। विदेश मंत्री ने कहा कि मोदी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है कि दुनिया में भारतीय संस्कृति और भारतीय विरासत को उचित स्थान मिले। मंदिरों के विश्व स्तरीय संरक्षण पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि भारत कंबोडिया में अंकोरवाट मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार कर रहा है क्योंकि भारत की सभ्यता भारत से आगे कई देशों तक विस्तृत है। जयशंकर ने कहा कि सिर्फ भारत में ही नहीं, केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं, बल्कि इसके बाहर भी कई क्षेत्रों में मंदिर हैं। उन्होंने कहा, '' मैं उपराष्ट्रपति के साथ दुनिया के सबसे बड़े मंदिर 'अंकोरवाट मंदिर परिसर' को देखने गया था। आज, हम अंकोरवाट में मंदिरों का जीर्णोद्धार करा रहे हैं। ये ऐसे योगदान हैं जो हम बाहर कर रहे हैं, क्योंकि भारत की सभ्यता भारत के बाहर तक फैली हुई है।'' उन्होंने कहा कि आज जब हम भारतीय सभ्यता की पुनर्स्थापना, पुनर्निर्माण और इसके पुनरुत्थान का काम रहे हैं, तो हमारा कार्य केवल भारत तक सीमित नहीं है, हमारा कार्य पूरे विश्व में है। चीन में भारत के राजदूत के रूप में अपने दिनों को याद करते हुए मंत्री ने कहा, "आप में से कुछ लोग जानते हैं कि मैं कई वर्षों से चीन में राजदूत रहा हूं। मैंने चीन के पूर्वी तट पर भी हिंदू मंदिरों के अवशेष देखे हैं।" उन्होंने कहा कि कोरिया और अयोध्या के बीच एक बहुत ही खास संबंध है और आज भी वहां के लोग अयोध्या के घटनाक्रम से जुड़े रहना चाहते हैं। उन्होंने बहरीन में श्रीनाथ जी मंदिर का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर मंदिरों के संरक्षण की जरूरत है और सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है कि भारतीयों की आस्था को और सशक्त किया जाए। उन्होंने कहा कि कोरिया से अयोध्या का रिश्ता आज दोनों देशों के बीच बड़ा संबंध बनाने में कारगर हो रहा है। विदेश मंत्री ने कहा कि मंदिरों के पुनरुत्थान से सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं, बल्कि विश्वभर को साथ लाने में मदद मिली है और इससे कारोबार ही नहीं बल्कि संस्कृति और आपसी संबंधों को भी मजबूती मिली है। वियतनाम में किये गये कार्यों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका में एक हजार से अधिक मंदिर हैं। मंत्री ने कहा कि विदेशों में साढ़े तीन करोड़ भारतीय और भारतीय मूल के लोग हैं, लेकिन वे जहां भी गए, वे हमारी संस्कृति को अपने साथ ले गए, वे हर दिन हमारी संस्कृति को जीते हैं। जयशंकर ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में रामायण सर्किट बनाने के लिए 200 करोड़ रुपये देने की प्रतिबद्धता जताई है, ताकि सभी भारतीयों को अपनी विरासत को करीब से देखने का अवसर मिले। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में भारत ने मन्नार स्थित थिरुकेतीश्वरम मंदिर का जीर्णोद्धार कराया, लेकिन यह मंदिर 12 साल से बंद था। जयशंकर ने अपने ट्वीट में कहा कि मोदी सरकार की सांस्कृतिक कूटनीति पूरी दुनिया के लाभ के लिए समृद्ध भारतीय परंपराओं को बनाने, पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापित करने पर केंद्रित है, यह वसुधैव कुटुम्बकम है। अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में मंत्री ने कहा कि वह विदेश मंत्री के रूप में दुनिया में मंदिरों की भूमिका के बारे में कुछ विचार साझा करना चाहते हैं, क्योंकि वह हर रोज दुनिया के साथ व्यवहार करते हैं। इसके बाद जयशंकर ने कहा, '' मंदिर केवल आस्था और पूजा के स्थान नहीं हैं, ये सामाजिक-सामुदायिक केंद्र होने के अलावा सभा के स्थान हैं, ज्ञान और संस्कृति के केंद्र हैं, ये कला और शिल्प के प्रवर्तक हैं। ये आर्थिक गतिविधियों के केंद्र हैं। लेकिन, सबसे बढ़कर, वे हमारी विरासत और हमारे इतिहास के रखवाले हैं। ये हमारे जीवन के तरीके हैं।'' विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की जयंती के अवसर पर वाराणसी में उनके भांजे के वी कृष्णन से हनुमान घाट स्थित उनके आवास पर जाकर भेंट की और कुशल क्षेम पूछा। जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि कृष्णन से मुलाकात के बाद विदेश मंत्री ने कहा कि महान तमिल साहित्यकारों में शामिल महाकवि भारती का काशी हनुमान घाट स्थित घर एक ज्ञान केंद्र और पावन तीर्थ है। उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण पर सुब्रह्मण्य भारती की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि काशी में ही भारती का परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ, उनके व्यक्तित्व पर काशी ने गहरा प्रभाव छोड़ा। जयशंकर ने कहा कि महाकवि के परिवार से मिलकर उन्हें ख़ुशी के साथ गर्व महसूस हुआ। उन्होंने कहा कि महाकवि भारती का जीवन, विचार और लेखन आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। विदेश मंत्री ने एक ट्वीट करके कहा कि उन्हें महाकवि सुब्रह्मण्य भारती के जन्मदिन पर उनके परिवार से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को 'काशी तमिल संगमम' का उद्घाटन किया था। इस दौरान उन्होंने सुब्रह्मण्य भारती को एक महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी बताया था। मोदी ने कहा था, "सुब्रह्मण्य भारती ने लंबे समय तक काशी में रहकर अध्ययन किया था। उन्होंने खुद को काशी के साथ इस तरह जोड़ा कि यह पवित्र स्थल उनके जीवन का हिस्सा बन गया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने सुब्रह्मण्य भारती को समर्पित एक पीठ की स्थापना की है।"
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