नई दिल्ली: मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एक अजीबोगरीब घटना हुई है। इसमें पोस्टमार्टम के दौरान गैरकानूनी रूप से डॉक्टर पर शव से खोपड़ी को अलग करने का आरोप लगा है। आरोपी डॉक्टर ने अब दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। चिकित्सक ने दावा किया है कि उसके खिलाफ लगाया गया जघन्य आरोप बेदम और सबूतों से रहित है। ये आरोप मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के परास्नातक विद्यार्थी और जूनियर रेजीडेंट चिकित्सक के खिलाफ लगाया गया है। इसे संस्थान ने पोस्टमार्टम करने से प्रतिबंधित कर दिया है। आरोप के मुताबिक, चिकित्सक ने जिस शव का पोस्टमार्टम किया उसकी खोपड़ी को अवैध रूप से निकाल लिया। मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष (विभागाध्यक्ष) की ओर से 29 जुलाई को जारी आदेश में कहा गया कि अज्ञात शव से खोपड़ी अलग करने के अनैतिक कृत्य में शामिल रहने की शिकायत पर चिकित्सक को तत्काल प्रभाव से पोस्टमार्टम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। आदेश के मुताबिक चिकित्सक को तब तक इस तरह के काम से प्रतिबंधित रखा जाएगा, जब तक कि वह अनैतिक रूप से अलग की गई खोपड़ी को विभाग को सौंप नहीं देता। इसमें कहा गया है कि यदि वह खोपड़ी नहीं सौंपता है, तो माना जाएगा कि उसने यह काम किसी गुप्त मंशा से किया। चिकित्सक के वकील ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से अपील की कि वह इस आदेश को रद्द कर दें। लेकिन इसके जवाब में अदालत ने कहा कि अस्पताल के दिशानिर्देश दंडित किये जाने के बराबर नहीं हैं, क्योंकि इसने याचिकाकर्ता को घटना की जांच चलने तक पोस्टमार्टम में भाग लेने से केवल प्रतिबंधित किया है। याचिका में कहा गया है कि यह पोस्टमार्टम पांच अप्रैल, 2022 को किया गया और बाद में प्राधिकारियों ने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने खोपड़ी को शव से निकाल लिया। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उस दिन पांच पोस्टमार्टम संस्थान में किये गये थे जिनमें याचिकाकर्ता शामिल हुआ था, लेकिन अन्य स्टॉफ सदस्य और कर्मचारी भी मौजूद थे। वकील के मुताबिक खोपड़ी हटाने के लिए याचिकाकर्ता को जिम्मेदार ठहराना पूरी तरह अवैध और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
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