नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि आरोपी को दोषी ठहराने के लिए उकसावे के प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रमाण और आरोपी के खिलाफ लगातार उत्पीड़न के सबूत होने चाहिए और इसके साथ ही इसने चेन्नई के एक डॉक्टर और उसकी मां को चिकित्सक की पत्नी की आत्महत्या के मामले में बरी कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी के कृत्य को स्थापित करने के लिए अकाट्य साक्ष्य भी होने चाहिए और आरोपी को घटना के समय आसपास होना चाहिए, इतना ही नहीं यह भी साबित हो सके कि उसके कृत्य के कारण ही पीड़िता ने आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाया। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले के तथ्यों पर विचार करने और प्रत्यक्षदर्शियों के साक्ष्य एवं अभियोजन पक्ष द्वारा पेश की गई अन्य सामग्रियों के मूल्यांकन के बाद कहा, ‘हमारा मानना है कि निचली अदालत ने अपीलकर्ताओं (डॉक्टर और उनकी मां) को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 498ए (दहेज के लिए उत्पीड़न) के तहत गलत तरीके से दोषी ठहराया और उच्च न्यायालय ने भी दोषसिद्धि को बरकरार रखकर न्यायोचित निर्णय नहीं दिया।’ शीर्ष अदालत ने निचली अदालत के 26 मार्च, 2021 के आक्षेपित आदेश और उच्च न्यायालय के 31 जनवरी, 2022 के आक्षेपित फैसले को अरक्षणीय करार देते हुए रद्द कर दिया।
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