नई दिल्ली: अमेरिका में शुरू हुआ बैंकिंग संकट दुनियाभर के देशों को अपनी चपेट में ले सकता है। दो हफ्ते में अमेरिका के तीन बड़े बैंक दिवालिया हो गए। बैंक पर ताला लग गया। सिग्नेचर बैंक बिकने की कगार पर पहुंच गया है। फर्स्ट रिपब्लिक बैंक की हालात खस्ता हो चुकी है। अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक से शुरू हुआ संकट अब तक तीन बैंकों को डुबा चुका है और ऐसे 186 बैंक कतार में खड़े हैं। अमेरिका के सेंटल बैंक फेडरल रिजर्व ने आक्रामक रूप से ब्याज दरें बढ़ाई, जिसके बाद अमेरिकी बैंक की हालात खराब हो गई। आज रात फेडरल रिजर्व बैंक की अहम बैठक होने जा रही है। इस बैठक पर सिर्फ अमेरिका नहीं दुनियाभर के देशों की निगाहें है। सबकी नजर इस बात पर है कि क्या फेड एक बार फिर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी करता है या फिर ब्याज दरों में कोई कमी की जाती है। फेड के सामने चुनौतियां है। अगर ब्याज दरों में बढ़ोतरी की गई तो अमेरिका के बैंकों के लिए ये एटम बम से कम नहीं होगा। यहां के बैंकों मं इससे तबाही मच सकती है। अगर फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की तो वहां के बैंकों में तबाही आ सकती है। बैंक भरभराकर गिर सकते हैं। इस कतार में 186 बैंक शामिल है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सामने मुश्किल चुनौती है। फेडरल अगर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करती है तो मौजूदा बैंकिंग संकट और बढ़ेगा और बैंकों को डुबा सकता है। वहीं दूसरी तरफ महंगाई पर काबू पाने की चुनौती है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सामने मुश्किल चुनौती है। फेडरल अगर ब्याज दरों में बढ़ोतरी करती है तो मौजूदा बैंकिंग संकट और बढ़ेगा और बैंकों को डुबा सकता है। वहीं दूसरी तरफ महंगाई पर काबू पाने की चुनौती है। अमेरिका में हाल में डूबने वाले बैंक सिलकॉन वैली और सिग्नेचर बैंक के दिवालिया होने के पीछे बड़ी वजह ब्याज दरों में बेतहाथा बढ़ोतरी को माना गया।
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