Monday, March 20, 2023

जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिकों की 'फाइनल वॉर्निंग', अभी फैसला नहीं लिया तो हो जाएगी बहुत देर

बर्लिन: दुनिया में जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिकों ने फाइनल वॉर्निंग दी है। संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों की एक शीर्ष समिति ने सोमवार को कहा कि मानवता के पास जलवायु परिवर्तन के भविष्य के सबसे गंभीर नुकसान को रोकने के लिए अब भी एक मौका है जो, आखिरी के करीब है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति (IPCC) ने कहा कि हालांकि ऐसा करने के लिए 2035 तक कार्बन प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन के उपयोग को लगभग दो-तिहाई तक कम करने की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए नये जीवाश्म ईंधन की खोज पर रोक और अमीर देशों को 2040 तक कोयला, तेल और गैस का उपयोग छोड़ने का आह्वान किया।संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा, ‘‘मानवता बर्फ की पतली चादर पर है और यह बर्फ तेजी से पिघल रही है। हमारी दुनिया को सभी मोर्चों पर जलवायु कार्रवाई की जरूरत है - सब कुछ, हर जगह, एक साथ।’’ गुतारेस ने जीवाश्म ईंधन पर कार्रवाई का अपना आह्वान तेज करते हुए न केवल ‘‘नो न्यू कोल" (यानी अब कोयला ईंधन चालित किसी भी नये ऊर्जा संयंत्र का विकास नहीं किया जाए) बल्कि 2030 तक अमीर देशों और 2040 तक गरीब देशों की ओर से इसके उपयोग को समाप्त करने का भी आह्वान किया।

ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में करनी होगी कमी

उन्होंने 2035 तक दुनिया के विकसित देशों में कार्बन उत्सर्जन मुक्त बिजली उत्पादन का आग्रह किया, जिसका अर्थ है गैस से चलने वाला कोई बिजली संयंत्र भी नहीं हो। यह तिथि महत्वपूर्ण है क्योंकि देशों को जल्द ही पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार, 2035 तक प्रदूषण में कमी के लक्ष्यों को पेश करना होगा। चर्चा के बाद, संयुक्त राष्ट्र की विज्ञान समिति ने गणना की और बताया कि पेरिस में निर्धारित तापमान की सीमा के तहत रहने के लिए दुनिया को 2019 की तुलना में 2035 तक अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 60 प्रतिशत की कटौती करने की आवश्यकता है।

जलवायु परिवर्तन ग्रह के लिए खतरा

उसने साथ ही यह भी कहा कि 2018 से जारी छह रिपोर्ट में नये लक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया था। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन को ‘‘मानव कल्याण और ग्रह के स्वास्थ्य के लिए खतरा’’ बताते हुए कहा गया है, ‘‘इस दशक में लागू किए गए विकल्पों और कार्यों का प्रभाव हजारों वर्षों तक रहेगा।’’ रिपोर्ट की सह-लेखिका और जल वैज्ञानिक अदिति मुखर्जी ने कहा, ‘‘हम सही रास्ते पर नहीं हैं, लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है। हमारा इरादा वास्तव में आशा का संदेश है, न कि कयामत के दिन का।’’ ऐसे में जब दुनिया तापमान को पूर्व-औद्योगिक समय से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के विश्व स्तर पर स्वीकृत लक्ष्य से कुछ ही दूर है, वैज्ञानिकों ने तात्कालिकता की भावना पर बल दिया।

'ये अंतिम चेतावनी है'

लक्ष्य को 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के हिस्से के रूप में स्वीकार किया गया था और दुनिया पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है। रिपोर्ट लिखने वालों सहित कई वैज्ञानिकों ने कहा कि यह नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिकों की 1.5 डिग्री के बारे में संभवत: अंतिम चेतावनी है क्योंकि उनकी अगली रिपोर्ट संभवतः तब आएंगी जब पृथ्वी इस निशान को पार कर चुकी होगी या जल्द ही इसे पार कर जाएगी। रिपोर्ट के सह-लेखक फ्रांसिस एक्स ने कहा कि 1.5 डिग्री के बाद 'जोखिम बढ़ने लगेंगे। रिपोर्ट में उस तापमान के आसपास प्रजातियों के विलुप्त होने का उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रवाल भित्तियां, बर्फ की चादरों का पिघलना और समुद्र का जलस्तर कई मीटर बढ़ना शामिल है। गुतारेस ने इस बात पर जोर दिया कि ‘‘1.5 डिग्री की सीमा प्राप्त की जा सकती है।’


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