Saturday, June 3, 2023

ओपिनियन : इतने बड़े हादसे पर तो रहने देतीं, क्या ये सियासत का वक्त है ममता जी

नई दिल्ली: ओडिशा के बालासोर में 2 जून हुए भीषण सड़क हादसे में तीन ट्रेनों की टक्कर और उसके बाद लोगों के क्षत-विक्षत शव ने हर किसी की रूह कंपा दी है। हादसे वाली जगह से जो तस्वीरें सामने आई हैं वो वाकई भयावह हैं। देखकर आंखों को विश्वास नहीं हो रहा कि ये सब कैसे हो गया। 288 लोगों की मौत और 800 के करीब घायलों की सूची हर किसी की आंखें नम कर रहे हैं। ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से लेकर रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव और खुद पीएम मोदी ने मोर्चा संभाला। पीएम मोदी ने क्लियर मैसेज दे दिया कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। सख्त से सख्त सजा और घायलों का हरसंभव इलाज हमारी प्राथमिकता है। इस रेल हादसे वाली जगह पर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी आई थीं। पहले तो उन्होंने घटना पर शोक जताया, इतिहास का सबसे बड़ा रेल हादसा बताया लेकिन, बाद में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से उलझ गईं। दो बार ऐसा हुआ कि रेल मंत्री को ममता दीदी को टोकना पड़ा।ममता आई तो थीं लोगों के सामने हादसे पर संवेदना प्रकट करने लेकिन, आरोप का जो दौर शुरू हुआ उसके बाद अलग ही नजारा देखने को मिला। टोकने के बावजूद उन्होंने कहा कि वह रेलवे को भी सलाह दे सकती हैं। कुलमिलाकर सियासत का भी रंग इस हादसे पर चढ़ गया। लेकिन, क्या यह सही था? एक ऐसे मौके पे जब सबकुछ भूलकर वो भी राजनीति से ऊपर उठकर मदद और पीड़ित परिवारजनों के साथ खड़े होने का समय है, वहां ममता बनर्जी का यह व्यवहार कहां तक जायज है? जो ममता बनर्जी 2010 में रेल मंत्री रहते अपने कार्यकाल में हुए रेल हादसों को विपक्ष की साजिश और मंचों से भाषण दे रही थीं वो अब इस रेल हादसे को सियासत का मैदान बनाने का सोच रही हैं। किस मसले पर रेल मंत्री से उलझ गईं सीएम ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बालासोर पहुंची थीं। उसी हादसे वाली जगह जहां 2 जून को भीषण रेल दुर्घटना हुई थी। पहले तो उन्होंने इसे सदी का सबसे बड़ा रेल हादसा बताया और उसके बाद मीडिया, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव सहित कई अधिकारियों से बात की। चल तो सबकुछ ठीक ही रहा था कि अचानक रेल मंत्री और ममता दीदी के बीच नोकझोंक देखने को मिली। दो बार तो ऐसा हुआ कि रेल मंत्री ने ममता बनर्जी को टोंका। जहां उन्हें रेल हादसे से पीड़ित लोगों का हाल-चाल जानना था वहां उन्होंने आरोपो की झड़ी लगा दी। ममता ने कहा कि वो रेलवे को भी नसीहत दे सकती हैं। ममता ने कहा कि रेलवे में तालमेल की कमी है। उन्होंने अपने से कहा कि इस हादसे में 500 लोग मारे जा चुके हैं। जबकि रेलवे ने खुद कहा कि इस एक्सीडेंट में 288 लोगों की मौत हुई है। मतलब आंकड़े भी फर्जी थे। जब वह लगातार बोल रही थीं तब अश्विनी वैष्णव ने उनसे बहस नहीं की और कोई पलटवार भी नहीं किया। हालांकि एक दो जगह टोका जरूर। रेलवे के बजट पर हमला, आंकड़े भी गलत ममता ने कहा कि रेलवे के बजट को घटा दिया गया है। जबकि यह सही नहीं है। इस साल के रेल बजट के खर्च को बढ़ाकर 2.40 लाख करोड़ किया गया है। यह अबतक का सबसे ज्यादा है। 2013-14 के मुकाबले 9 गुना ज्यादा आवंटित किया गया है। ममता बनर्जी ने फिर कहा कि ऐसे हादसों में रेल हादसों में सिस्टम है कि मारे गए लोगों को 15 लाख मिलता है। फिर रेल मंत्री से पूछा कि 10 या 15 लाख? रेल मंत्री ने कहा कि 10। इसके बाद उन्होंने मरने वालों की संख्या फिर 500 बता दी। जिसपर रेल मंत्री ने कहा कि आंकड़ा ऐसा नहीं है। ममता ने तो सोच लिया था कि आज तो सियासत होकर रहेगी। उन्होंने रेल मंत्री वैष्णव से कहा कि 3 डिब्बे क्लियर नहीं हुए हैं। इसपर अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सब क्लियर हो चुका है। ममता का हमला फिर केंद्र सरकार की तरफ शुरू हो गया। ममता ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि वह रेलवे को सलाह भी दे सकती हैं। अपना कार्यकाल भूल गईं ममता बनर्जी ओडिशा के बालासोर रेल हादसे के बाद सीएम ममता बनर्जी केंद्र सरकार के खिलाफ इतनी मुखर हैं। जब वह यूपीए शासन में केंद्र में रेल मंत्रालय का पद्भार संभाल रही थीं तब क्या हुआ था। यह वही ममता बनर्जी हैं जो साल 2010 में सैंथिया जंक्शन में ट्रेन हादसे के बाद पार्टी कार्यक्रम और मंच से भाषणबाजी कर ही थीं। यहां तो कम से कम पीएम मोदी ने गोवा में वंदे भारत का उद्घाटन कैंसिल करने के साथ घायलों से मुलाकात के अलावा घटनास्थल का भी दौरा किया। एक्सीडेंट के तुरंत बाद ही रेल मंत्री ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बालासोर के लिए रवाना हो गए थे। लेकिन आप तो साल 2010 में हुए रेल हादसे के बाद भी मंच से लच्छेदार भाषण दे रही थीं। 2010 में हुए सैंथिया जंक्शन में ट्रेन हादसे में 65 लोगों की मौत हो गई थी। कहानी यहीं खत्म हो जाए तो क्या है फिर। साल 2010 था ही। ममता दीदी को याद दिलाया जाए कि 28 मई को ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के 13 डिब्बे पटरी से उतर गए थे। इस हादसे में 140 से अधिक या 170 लोगों की मौत हो गई थी। पश्चिमी मिदनापुर में हुई इस घटना के बाद चारों ओर हाहाकार मच गया था। दूसरी ओर से आती मालगाड़ी ने ट्रेन की पांच बोगियों को टक्कर मारी, जिसके चलते हादसा और भीषण हो गया था। तब रेल हादसे का आरोप उन्होंने अपने राजनीतिक विरोधियों और माओवादियों पर लगा दिए थे। कहा कि ये उन लोगों की साजिश है। ममता दीदी ने तब कहा था कि माओवादी आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं। आप शांति की बात कह कर लोगों को मार नहीं सकते। हम पीछे बैठकर नहीं देख सकते। लेकिन उन्हें सीपीआई एम के लीडर सीताराम येचुरी ने ही याद दिलाया कि ममता बनर्जी ने कहा था कि माओवादी राज्य में हैं ही नहीं। तब सीपीएम के राज्य सचिव बिमान बोस ने कहा था कि रेल मंत्री को ज़िम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए ना कि माओवादियों पर जिम्मेदारी डालनी चाहिए। अब आज के से तुलना करें तो। यही रेल मंत्री कह देते कि यह हादसा विपक्ष की साजिश है तब क्या होता। अगर ममता को सियासत ही करना था तो पहले अपना रेल मंत्री का कार्यकाल याद कर लेना चाहिए था।


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