Tuesday, September 13, 2022

राम-दशरथ, कबीर का भी आया जिक्र... श्राद्ध को लेकर ट्विटर पर ये कैसी डिबेट छिड़ी?

नई दिल्ली: सोशल मीडिया के दौर में आपको पूरी आजादी है कि आप अपने मन की राय सामने रखें। हैशटैग लगाकर अभियान चलाएं या किसी बात का विरोध करें। ऐसे ही समर्थन और विरोध का सिलसिला मंगलवार शाम को ट्विटर पर श्राद्ध को लेकर चल पड़ा। एक तरफ #श्राद्ध_करना_गलत_है का हैशटैग चल पड़ा तो उसे काउंटर करने के लिए , का हैशटैग भी सामने आ गया। दोनों तरफ से अपने तर्क रखे गए, तस्वीरें शेयर की गईं। इस डिबेट की बात करने से पहले आइए जान लेते हैं श्राद्ध क्या होता है फिर इसके समर्थन और विरोध की बात करेंगे। श्राद्ध क्या होता है पितरों के प्रति श्रद्धापूर्वक किया गया कार्य ही श्राद्ध कहलाता है। वैसे, दुनिया में अलग-अलग मतों के अनुयायी किसी न किसी रूप में अपने पूर्वजों को याद करते हैं। उसका आधुनिक रूप समारोह आयोजित कर पुण्यतिथि मनाना कह सकते हैं। इस दौरान उस व्यक्ति के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की जाती है और उनकी महानता का जिक्र होता है। भारत की सनातन संस्कृति समावेशी रही है। यह न केवल अपना चिंतन करती है बल्कि उनकी भी चिंता करती है जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। श्राद्ध का वास्तविक उद्देश्य श्राद्धपक्ष में अपने पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करना, उनकी पूजा करना, तर्पण देना, पंच ग्रास देना, ब्रह्मभोज/श्राद्ध भोज करवाना और दक्षिणा देना है। इस बार पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरू होकर 25 सितंबर तक रहेगा। जहां मान्यता और आस्था की बात आती है वहां उसका सम्मान किया जाता है, भले ही वह किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हों। लेकिन मॉडर्न ख्याल का खुद को दिखाते हुए कुछ लोग सोशल मीडिया पर लोगों की आस्था पर चोट पहुंचाना शुरू कर देते हैं। कबीर का जिक्र भी ले आए सोशल मीडिया पर #श्राद्ध_करना_गलत_है को सपोर्ट करने वालों ने गीता, कबीर दास की बातों को सामने रखते हुए श्राद्ध की परंपरा का विरोध किया। आरडी सोनी ने एक तस्वीर शेयर करते हुए कबीर का जिक्र किया। पोस्टर में कहा गया कि कबीर कहते थे, 'जिंदा बाप के लठ्ठम लठ्ठा, मूए गंग पहुंचइया। जब आवे आसोज का महीना, फिर कौआ बाप बनइया।' इसका मतलब भी बताया गया है कि जीवित रहने पर लोग पिता की सेवा न करके झगड़ा करते हैं और मरने के बाद कौआ को पिता समझकर श्राद्ध की खीर खिलाते हैं। ऐसे ही विरोध करने वालों ने कई तरह की तस्वीरें शेयर करते हुए श्राद्ध न करने की बात कही है। समर्थक भी उतरे मैदान में श्राद्ध के विरोध का जब ट्रेंड टॉप में आ गया तो समर्थक कहां पीछे रहने वाले थे। #श्राद्ध_से_उद्धार_है का हैशटैग बना और लोग इसके सपोर्ट में लिखने लगे। तुषार राउत ने लिखा, 'श्राद्ध सनातन धर्म के 16 संस्कार में से एक है। यह हमारे पूर्वजों का ऋण चुकाने का अवसर है। भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था।' तुषार ने एक तस्वीर शेयर की जिसमें कुछ विदेशी श्राद्ध करते दिखाई दे रहे हैं। इसमें लिखा है, 'श्राद्ध करने से पितरों को कष्टमय जीवन से मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन सुखमय होता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिंदुओं को सही शिक्षा नहीं मिलने के कारण ये सब पिछड़ापन लगता है जबकि विदेशी लोग भी श्राद्ध की महिमा जानते हैं।' दिलचस्प यह है कि कुछ लोग गीता का हवाला देते हुए श्राद्ध का विरोध कर रहे थे, तो समर्थक भी गीता का ही प्रसंग लेकर समर्थन की बात बताने लगे। कुछ लोगों ने अपने गुरुओं के हवाले से श्राद्ध महिमा समझाई। एक यूजर ने लिखा कि अगर श्राद्ध नहीं करते तो पितर दुत्कार कर चले जाते हैं फिर घर में मुसीबतें और आपदाएं आती रहती हैं। श्राद्ध को लेकर जहां हिंदू एकमत नहीं दिख रहे हैं। वहीं, इसको लेकर मुगलों का एक प्रसंग मिलता है। जानकार बताते हैं कि इस परंपरा का जिक्र शाहजहां ने भी किया था। औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा में बंदी बनाकर रखा था। वहां शाहजहां को सीमित मात्रा में पीने का पानी मिलता था। उसने औरंगजेब को संदेश भिजवाया कि इतने पानी से गुजर नहीं होता। पानी की मात्रा बढ़ा दें। औरंगजेब ने मना कर दिया। तब शाहजहां ने कहा था तुम से अच्छे तो हिन्दू हैं जो मरने के बाद भी अपने पूर्वजों को पानी देते हैं।


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