नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय शुक्रवार को दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए पराली जलाने पर नए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) को सुनवाई के लिए 10 नवंबर को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने वकील शशांक शेखर झा के प्रतिवेदन पर संज्ञान लिया। झा ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता में एक जनहित याचिका दायर कर कहा कि दिल्ली के निकटवर्ती इलाकों में पराली जलाए जाने के कारण वायु प्रदूषण की स्थिति और खराब हो गई है। वकील ने कहा, 'ऐसे हालात में आम लोग भी नहीं चल सकते और पराली जलाए जाने के कारण वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का स्तर बढ़ गया है।' प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'इसे 10 नवंबर को सूचीबद्ध करें।' शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 और 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 और 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 और 300 के बीच ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत खराब’, और 401 और 500 के बीच ‘गंभीर’ श्रेणी में माना जाता है। याचिका में स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी व निजी कार्यालयों में डिजिटल माध्यम से कामकाज का निर्देश देने की भी मांग की गई है। वकील ने आरोप लगाया कि प्रदूषण की समस्या हर साल पैदा होती है और दिल्ली-एनसीआर में धूम कोहरे के कारण जीवन और स्वतंत्रता पर गंभीर खतरा है। याचिका में कहा गया, “मामला गंभीर चिंता का है जिसके लिए अदालत के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।” याचिका में पराली जलाने के कारण होने वाले वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक “उच्च स्तरीय समिति” की नियुक्ति की मांग की गई है। इसमें कहा गया, “स्मॉग-टावरों की स्थापना, वृक्षारोपण अभियान, किफायती सार्वजनिक परिवहन, आदि सहित प्रदूषण को कम करने के लिए आवश्यक उपाय करने के वास्ते प्रत्येक राज्य को एक आदेश या दिशानिर्देश जारी करें।” याचिका में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से कहीं भी पराली जलाने के मामले की जिम्मेदारी लेने का निर्देश देने की भी मांग की गई।
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