बहराइच: राष्ट्रीय जलीय पशु गंगेज़ डॉल्फिन का शव गेरूआ नदी के चौधरी चरण सिंह बैराज में फंसे होने की सूचना से वन विभाग में हडकम्प मच गया। दरअसल जिस तरह दुर्लभ प्रजाति में टाइगर का शुमार होता है उसी तरह डॉल्फिन भी शैडूल वन का जलीय जीव है। डॉल्फिन की मौत की सूचना पर फौरन ही प्रभागीय वनाधिकारी मौके पर पहुंचे और उन्होंने उसको रेस्क्यू करा कर फ्रीज में रखवा दिया और डॉक्टरों को पोस्टमार्टम के लिए सूचना दे दी। प्रभागीय वनाधिकारी आकाश दीप बधावन ने बताया कि यह 10 वर्ष पुरानी मादा डॉल्फिन थी और इसकी लम्बाई 1.97 मीटर और गोलाई 1.12 मीटर थी। डॉल्फिन के पोस्टमार्टम के लिए तीन डॉक्टरों का पैनल बनाया गया। एक डॉक्टर टर्टल सर्वाइवल एलाइन्स से बुलाए गए व एक डॉक्टर दुधवा से तथा एक स्थानीय पशु चिकित्सक को बुलाया गया। तीनों डॉक्टरों के पैनल ने सामूहिक निर्णय के बाद बताया कि गला चोक होने व सफोकेशन के कारण डॉल्फिन की मौत हुई और डॉल्फिन के गले, नाक व मुँह पर भी खून के धब्बे थे। पांच वर्ष पूर्व हुई डॉल्फिन की गणना के अनुसार कतर्नियाघाट में बहने वाली गेरूआ में इनकी संख्या 56 है और गंगा व उसकी सहायक नदियों में मिला कर भारत में इनकी सँख्या मात्र 3500 है। गंगेज़ डॉल्फिन काफी शर्मीली होती है, यह देख नहीं सकती इसलिए ध्वनि से ही शिकार करती है। एशिया में भारत के अलावा यह डॉल्फिन सिर्फ पाकिस्तान और चीन में पाई जाती है। रिपोर्ट : अज़ीम मिर्ज़ा
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