प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन दिवसीय ऑस्ट्रेलिया यात्रा में चमक-दमक और उत्सव का तत्व जितना महत्वपूर्ण रहा, उतना ही जोर द्विपक्षीय संबंधों में मजबूती लाने पर भी दिखा। वहां भारतीय मूल के लोगों के भव्य कार्यक्रम में के साथ ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री अल्बानीज और उनके सहयोगियों के साथ विपक्ष के नेताओं की मौजूदगी ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि दोनों देशों के रिश्ते सरकारों के स्तर से आगे बढ़कर आम लोगों के स्तर तक पहुंच चुके हैं और दिनों-दिन मजबूत होते जा रहे हैं। इसी तथ्य को पीएम मोदी ने क्रिकेट की भाषा में व्यक्त करते हुए कहा कि दोनों देशों के रिश्ते टी-20 मोड में पहुंच चुके हैं। उनकी यह यात्रा क्वॉड देशों की बैठक के मद्देनजर आयोजित हुई थी, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के आने का कार्यक्रम अचानक रद्द होने की वजह से वह मीटिंग हिरोशिमा में ही कर ली गई। ऐसे में पीएम मोदी की यात्रा भी टाली जा सकती थी, लेकिन संबंधों में आती मजबूती का ही एक और उदाहरण कहिए कि बहुपक्षीय से द्विपक्षीय में तब्दील होने के बाद भी दोनों में से किसी भी देश ने प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा की अहमियत कम नहीं होने दी। पिछले एक साल में मोदी और ऑस्ट्रेलियाई पीएम अल्बानीज अलग-अलग मंचों और मौकों पर छह बार मिल चुके हैं। उनके बीच विकसित हुई पर्सनल केमिस्ट्री का असर न केवल उनकी गर्मजोशी और उनके बॉडी लैंग्वेज में दिखता है बल्कि इस यात्रा के दौरान हुए अहम समझौतों और आगे के समझौतों के लिए बनी सहमति पर भी नजर आता है। बुधवार को दोनों नेताओं ने माइग्रेशन और मोबिलिटी पार्टनरशिप पैक्ट पर दस्तखत किए, जिसका मकसद स्टूडेंट्स, रिसर्चर्स और बिजनेसपर्संस को नए अवसर मुहैया कराने के साथ ही अवैध माइग्रेशन पर रोक लगाना है। इसके अलावा ग्रीन हाइड्रोजन टास्कफोर्स बनाने पर हुई सहमति के साथ ही कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनमिक कोऑपरेशन एग्रीमेंट (सीईसीए) को साल के अंत तक अंतिम रूप देने की प्रतिबद्धता भी काबिले गौर है। सीईसीए पर अगले दो दौर की बातचीत जून और जुलाई में ही होनी है। वैसे यूक्रेन युद्ध और उसमें रूस की भूमिका पर दोनों देशों में गंभीर मतभेद भी हैं, लेकिन चीन की बढ़ती आक्रामकता से निपटने की साझा रणनीति में इन मतभेदों को आड़े नहीं आने दिया जा रहा। बहरहाल, ताजा यात्रा की बात करें तो इन तमाम पहलुओं पर भारी पड़ा ऑस्ट्रेलिया में हाल के दिनों में मंदिरों पर हुए हमलों और खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों का मसला। अच्छी बात यह रही कि ऑस्ट्रेलिया ने भारत की चिंता को लेकर संवेदनशीलता दिखाई। फिर भी दीर्घकालिक नजरिए से देखा जाए तो देश की एकता और अखंडता से जुड़े मसलों की गंभीरता तो निर्विवाद है, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के आपसी विवादों से जुड़े मसलों को भारतीय कूटनीति के केंद्र में लाना कितना जरूरी और कितना फायदेमंद है, इस पर और विचार किए जाने की जरूरत है।
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