तोक्यो: दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्रों में से सात के नेता इस सप्ताह के अंत में द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु हमले का शिकार हुए हिरोशिमा में बैठक करेंगे। इस बैठक को G7 के नाम से जाना जाता है। यूक्रेन युद्ध के दौरान बढ़ते परमाणु हमले के खतरे के बीच हिरोशिमा में बैठक दुनिया के लिए होने वाली तबाही का एक प्रतीकात्मक संकेत भी है। माना जा रहा है कि इस बैठक में चीन, रूस और उत्तर कोरिया की बढ़ती आक्रामकता, तेल और गैस के दाम, ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा हो सकती है।
G7 के लिए हिरोशिमा को क्यों चुना गया
पूरी दुनिया इस समय गंभीर सुरक्षा संकट का सामना कर रही है। रूस यूक्रेन युद्ध और उत्तर कोरिया की हठधर्मिता के कारण परमाणु हमले का खतरा बना हुआ है। ऐसे में G7 की बैठक एक ऐसे शहर में हो रही है, जो परमाणु हमले का शिकार हो चुका है। बैठक वाली जगह से हिरोशिमा का शांति स्मारक संग्रहालय ज्यादा दूर नहीं है। यहां दर्जनभर घड़ियां प्रदर्शित हैं, जिनमें से कई अब भी सुबह 8.16 बजे रुकी हैं। 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने हिरोशिमा पर सुबर 8.16 मिनट पर परमाणु हमला किया था। शुरुआती विस्फोट में 70,000 लोग मारे गए थे और दसियों हज़ार अन्य लोगों को धीरे-धीरे जलने या जलने से मरने के लिए छोड़ दिया था।G7 शिखर सम्मेलन क्या है?
G7 सात प्रमुख औद्योगिक राष्ट्रों का एक अनौपचारिक समूह है। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। इसकी अध्यक्षता सात सदस्य देशों के बीच बारी-बारी से रहती है। इस साल जी-7 की अध्यक्षता जापान के पास है। इसमें । यूरोपीय संघ के दो प्रतिनिधि भी शामिल हैं। पहले से चली आ रही परंपरा के अनुसार, जी-7 की बैठक में कुछ गैर सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता भी भाग लेते हैं। इस दौरान इन देशों के नेता आर्थिक नीति, सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और लिंग सहित कई मुद्दों पर चर्चा करते हैं।बैठक में कौन से बाहरी देशों के नेता आ रहे
इस वर्ष जी-7 की बैठक में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम के नेताओं को आमंत्रित किया गया है। यह निमंत्रण जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के ग्लोबल साउथ और अमेरिका के विकासशील देशों तक पहुंचने की रणनीति के तहत दिए गए हैं। इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, विश्व बैंक, विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व व्यापार संगठन के नेताओं को भी आमंत्रित किया जाता है।G7 की प्रासंगिकता पर उठ रहे सवाल
G7 के बाहर के नेताओं को निमंत्रण सहयोगी और भागीदार देशों में सहयोग बढ़ाने के लिए हैं। हालांकि, वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में जी-7 देशों की हिस्सेदारी चार दशक पहले के लगभग 50 प्रतिशत से घटकर अब लगभग 30 प्रतिशत रह गई है। इससे चीन, भारत और ब्राजील जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने भारी लाभ कमाया है। यही कारण है कि अब जी -7 की प्रासंगिकता और विश्व अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने में इसकी भूमिका के बारे में सवाल उठ रहे हैं।G7 के प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
उम्मीद की जा रही है कि G7 की बैठक में सदस्य देशों के नेता यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस की निंदा करेंगे। इसके साथ ही वे यूक्रेन के लिए अपना समर्थन जारी रखने का संकल्प भी लेंगे। यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जी-7 के सत्र में शामिल होंगे। इसके अलावा ताइवान के खिलाफ चीनी आक्रामकता पर भी चर्चा की जाएगी। सदस्य देश चीन की भी निंदा कर सकते हैं। हालांकि, इनमें से कोई भी देश ताइवान को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता नहीं देता है। इसके अलावा जी-7 देश चीन और रूस के खिलाफ ग्लोबल साउथ देशों को मदद का भी ऐलान कर सकते हैं। इनमें मित्र देशों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने के लिए स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे में अधिक सहायता प्रदान करने का भी ऐलान किया जा सकता है।from https://ift.tt/KXpQzvB
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