Tuesday, May 16, 2023

जेल से चुनाव जीतने वाले यूपी के पहले बाहुबली हरिशंकर तिवारी, हर दल की जरूरत बन गए थे

लखनऊ: हरिशंकर तिवारी () का 90 साल की उम्र में मंगलवार को निधन (Harishankar Tiwari Death News) हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन के बाद लगभग हर राजनीतिक दल की ओर से संवेदना संदेश आए। आज यूपी की राजनीति में बाहुबली नेता एक आम सा विशेषण है। इस विशेषण का जन्‍म हरिशंकर तिवारी के साथ शुरू हुआ जब 1980 के दशक में उन्‍होंने जेल में रहते हुए कांग्रेस के उम्‍मीदवार को हराया। यह वह समय था जब पूरे देश में इंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस के लिए सहानुभूति की आंधी चल रही थी। हरिशंकर तिवारी ऐसे ही पूर्वांचल के सबसे रसूखदार और ब्राह्मण राजनीति के अगुआ नहीं बने। उनकी राजनीति उस विचारधारा की उपज थी जिसने इमरजेंसी के विरोध में तानाशाही सत्‍ता से लोहा लेने में हिचक नहीं दिखाई। पूर्वांचल में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन छात्र नेताओं के लिए नर्सरी का काम कर रहा था। हरिशंकर तिवारी की छात्र राजनीति यहीं से निकली थी।

गोरखपुर विश्‍वविद्यालय से राजनीति शुरू

हरिशंकर तिवारी की राजनीति कॉलेज की चारदीवारी से बाहर आकर आपसी वर्चस्‍व की लड़ाई में बदल गई। गोरखपुर विश्‍वविद्यालय में उनका मुकाबला बलवंत सिंह गैंग से हुआ। दोनों के बीच गोलियां चलने लगीं, चाकूबाजी और मारपीट भी हुई।

ब्राह्मणों के नेता बने

बलवंत सिंह ठाकुर समुदाय के दबंग नेता थे। उनके ऊपर ठाकुर वीर प्रताप शाही का हाथ था। वहीं हरिशंकर तिवारी ब्राह्मण वर्ग से थे। कुल मिलाकर दोनों के बीच की यह वर्चस्‍व की लड़ाई दो वर्गों की नाक की लड़ाई बन गई। हरिशंकर तिवारी के ऊपर हत्या, हत्या की साजिश रचने, किडनैपिंग, रंगदारी वसूलने जैसे मामलों में 26 से ज्यादा केस भी दर्ज हुए। हालांकि, वह किसी में भी दोषी साबित नहीं हो पाए।

रॉबिनहुड सरीखी छवि बनाई

माफ‍िया के कारोबार से धीरे-धीरे उनका रसूख बढ़ता गया। लेकिन हरिशंकर तिवारी ने अपनी इमेज गरीबों का दुख दूर करने वाले रॉबिनहुड सरीखे जननायक की बनाई। वह ऐसा करते भी थे। इसी की बदौलत उन्‍हें अपार जनसर्थन मिला। इसी के बल पर वह जेल में रहते हुए भी चुनाव जीते।
लगातार 22 साल विधायक
उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चिल्‍लूपार सीट से वह लगातार 22 साल विधायक चुने गए। अलग-अलग 5 सरकारों में वह मंत्री पद पर काबिज रहे। वह किस तरह हर दल की जरूरत बन गए थे, यह इस बात से समझा जा सकता है कि उन्‍होंने जिस कांग्रेस के नेता को हरा कर राजसत्‍ता के गलियारे में कदम रखे, उसी कांग्रेस ने उन्‍हें अपना सदस्‍य बनाया। यहां तक कि जब जगदंबिका पाल यूपी के एक दिन के सीएम बने तो उनकी कैबिनेट में भी वह मंत्री थे। वह 1998 में कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बने, इसके बाद बीजेपी के सीएम रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी मंत्री रहे। इसके बाद मायावती और 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री रहे।
2007 में पहली बार हारे
लेकिन उन्‍हें हार का मुंह 2007 में देखना पड़ा जब पूर्व पत्रकार राजेश त्रिपाठी ने उन्‍हें मात दी। इसके बाद 2012 में दोबारा हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को दे दी। विनयशंकर फिलहाल सपा में हैं।


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