Monday, January 23, 2023

'क्यों न सभी आरोपियों को जमानत दे दें', जानिए किस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को सुनाया

दिल्ली/पटना: ने बिहार शराबबंदी और आबकारी अधिनियम से जुड़े एक और मामले की सुनवाई हुई। इसके तहत आने वाले मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों को इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया नहीं कराने पर नाराजगी जाहिर की। इसे स्थापित करने में सात साल की देरी पर नाराजगी जताई। उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया कि क्यों नहीं सरकार अदालतों के लिए अपनी इमारतें खाली कर देती?

बिहार सरकार पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने अधिनियम की धारा-37(2) के तहत राज्य की ओर से न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियों को कार्यकारी मजिस्ट्रेट को देने पर भी चिंता जताई, जिसको लेकर पटना उच्च न्यायालय ने भी आपत्ति जताई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि वो शराबबंदी अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए जरूरी सुविधाएं मुहैया करने से लेकर कार्यकारी मजिस्ट्रेट को शक्तियां हस्तांतरित करने सहित सभी पहलुओं पर विचार करेगी।न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने कहा कि कानून को 2016 में पारित किया गया लेकिन अबतक विशेष अदालतें गठित करने के लिए जमीन तक चिह्नित नहीं की गई है। पीठ ने हैरानी जताई कि क्यों नहीं शराबबंदी अधिनियम के तहत आरोपित सभी आरोपियों को इन मामलों की सुनवाई के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने तक जमानत पर रिहा किया जाए?

सात साल में स्पेशल कोर्ट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं

कोर्ट ने बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार से कहा, ‘आपने वर्ष 2016 में कानून पारित किया और सात साल बीतने के बावजूद आप विशेष अदालतें गठित करने के लिए अब भी जमीन देख रहे हैं। क्यों नहीं हम इस कानून के तहत दर्ज मामले के सभी आरोपियों को जमानत दे दें? आप अदालतों के लिए सरकारी इमारतों को खाली क्यों नहीं कर देते?’शीर्ष अदालत ने कहा कि इस अधिनियम के तहत 3.78 लाख आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से केवल 4116 मामलों का निस्तारण किया गया है जो दिखाता है कि ऐसे मामले की सुनवाई न्यायपालिका पर बोझ है। न्यायालय ने कहा, ‘ यही समस्या है, आपने न्यायापलिका की अवसंरचना और समाज पर पड़ने वाले असर को देखे बिना कानून पारित कर दिया। आप क्यों नहीं समझौते को प्रोत्साहित करते,अगर अवसरंचना समस्या है।’शीर्ष अदालत वर्ष 2016 में लागू शराबबंदी कानून से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही है। न्यायमित्र की भूमिका निभा रहे गौरव अग्रवाल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियों वाले प्रावधान पर आपत्ति जताई है और कानून के प्रावधानों में संशोधन की जरूरत है। पीठ ने कुमार को एक सप्ताह का समय राज्य सरकार से आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिए देते हुए कहा कि वो इस मामले के सभी पहलुओं पर विचार करेगी।


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