Sunday, November 3, 2024

भारत-चीन सीमा से सैनिकों की वापसी पर क्या बोले जयशंकर, यूक्रेन-इजरायल मुद्दे पर रखा देश का पक्ष

ब्रिस्बेन: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि भारत और चीन ने सैनिकों को पीछे हटाने की दिशा में ''कुछ प्रगति'' की है। उन्होंने इस घटनाक्रम को ''स्वागत योग्य'' कदम बताया। जयशंकर की यह टिप्पणी पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध वाले दो बिंदुओं-डेमचोक और देपसांग में भारतीय और चीनी सैनिकों के पीछे हटने के कुछ दिनों बाद आई है। भारतीय सेना ने देपसांग में सत्यापन गश्त शनिवार को शुरू की, जबकि डेमचोक में गश्त शुक्रवार को शुरू हुई थी।

जयशंकर ने ब्रिस्बेन में क्या कहा

जयशंकर ने ब्रिस्बेन में प्रवासी भारतीय समुदाय के लोगों के साथ बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, ''भारत और चीन के संदर्भ में हमने कुछ प्रगति की है। आप जानते हैं कि हमारे संबंध कुछ कारणों से बहुत ही खराब थे। हमने (सैनिकों के) पीछे हटने की दिशा में कुछ प्रगति की है।''

सैनिकों की तैनाती से कई पहलू प्रभावित

विदेश मंत्री ने कहा, ''वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक तैनात हैं, जो 2020 से पहले वहां नहीं थे और बदले में हमने भी जवाबी तैनाती की। इस अवधि के दौरान संबंधों के अन्य पहलू भी प्रभावित हुए हैं। इसलिए स्पष्ट रूप से, हमें पीछे हटने के बाद देखना होगा कि हम किस दिशा में आगे बढ़ते हैं।''

मोदी-जिनपिंग मुलाकात को सराहा

जयशंकर ने कहा, ''लेकिन, हमें लगता है कि पीछे हटना एक स्वागत योग्य कदम है। इससे यह संभावना खुलती है कि अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं।'' उन्होंने कहा कि पिछले महीने रूस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद उम्मीद थी कि ''राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) और मैं दोनों अपने समकक्षों से मिलेंगे। तो चीजें इस तरह हुई हैं।''

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दी थी समझौते की जानकारी

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 21 अक्टूबर को दिल्ली में कहा था कि पिछले कई हफ्तों की बातचीत के बाद भारत और चीन के बीच एक समझौते को अंतिम रूप दिया गया है, जिससे 2020 में उठे मुद्दों का समाधान निकलेगा। पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर सैनिकों को पीछे हटाने और गश्त करने पर सहमति बनी, जो चार साल से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ी सफलता है। जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आई थी।

दो देशों की यात्रा में ब्रिस्बेन पहुंचे हैं जयशंकर

दो देशों की अपनी यात्रा के पहले चरण में आस्ट्रेलिया के शहर ब्रिस्बेन पहुंचे जयशंकर ने कहा कि इस समय दो संघर्षों पर हर किसी की नजरें टिकी हुई हैं। उन्होंने एक अन्य सवाल पर कहा, ''एक यूक्रेन है। और दूसरा पश्चिम एशिया में जो हो रहा है। अलग-अलग तरीकों से हम दोनों में कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं।''

यूक्रेन-रूस संघर्ष पर क्या बोले जयशंकर

यूक्रेन-रूस संघर्ष पर जयशंकर ने कहा कि भारत कूटनीति पर फिर से जोर दे रहा है, तथा प्रधानमंत्री मोदी व्यक्तिगत रूप से दोनों देशों के नेताओं के साथ बैठकों में शामिल रहे हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जुलाई में रूस गए थे और फिर अगस्त में यूक्रेन गए। प्रधानमंत्री ने जून में और सितंबर में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मुलाकात की। पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी ने कजान में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ फिर से बैठक की थी।

संघर्ष के कारण पूरी दुनिया को नुकसान

जयशंकर ने कहा कि संघर्ष के कारण, हर दिन रूस और यूक्रेन तथा अमीर देशों के अलावा दुनिया को भी नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा, ''इसलिए, यह ऐसी स्थिति है, जिसमें कुछ हद तक सक्रियता या सक्रिय कूटनीति की आवश्यकता है। हम ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं।'' उन्होंने कहा, ''जब हमने यह करना शुरू किया, तो ईमानदारी से कहूं तो एक हद तक संशय था। मैं कहूंगा कि आज, खासकर पश्चिमी देशों के बीच, काफी समझ है...हमारे प्रयासों के लिए हमें 'ग्लोबल साउथ' से भी बहुत मजबूत समर्थन मिल रहा है। इसलिए, हम उम्मीद कर रहे हैं कि कई बातचीत के माध्यम से, हम कुछ साझा आधार बनाने में सक्षम होंगे...।''

ग्लोबल साउथ का किया जिक्र

'ग्लोबल साउथ' का संदर्भ कम आय वाले देशों या विकासशील देशों के लिए किया जाता है। पश्चिम एशिया की स्थिति पर जयशंकर ने कहा कि वहां की स्थिति बहुत अलग है। उन्होंने विस्तृत जानकारी दिए बिना कहा, ''फिलहाल, संघर्ष को फैलने से रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। यहां एक अंतर यह है कि ईरान और इजराइल एक-दूसरे से सीधे बात करने में असमर्थ हैं। इसलिए विभिन्न देश यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या वे इस अंतर को पाट सकते हैं। हम उनमें से एक हैं।''

पश्चिम एशिया में शांति पर भारत का जोर

पिछले महीने रूस में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान से मुलाकात की, जिन्होंने पश्चिम एशिया में शांति की आवश्यकता पर बल दिया तथा ईरान और इजराइल के बीच बढ़ते तनाव के बीच सभी पक्षों के साथ अच्छे संबंधों के कारण संघर्ष को कम करने में भारत की भूमिका पर जोर दिया।

क्वाड पर भी दिया बयान

'क्वाड' के बारे में उन्होंने कहा कि चार सदस्यीय समूह का उद्देश्य बड़ा है। उन्होंने भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के समूह का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें चार बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। इन सभी देशों ने काम करने के लिए एक साझा एजेंडा बनाया है। उन्होंने कहा, ''मेरा मतलब है कि क्वाड कई काम करता है। कनेक्टिविटी और जलवायु पूर्वानुमान से लेकर फेलोशिप तक। इसलिए इसके तहत कई गतिविधियां होती हैं।''


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