Tuesday, November 12, 2024

सस्ते कर्ज की राह में कैसे बड़ी चुनौती बनी फूड इंफ्लेशन?

नई दिल्ली: रिटेल इंफ्लेशन को काबू करने की कोशिशों में फूड इंफ्लेशन एक बड़ी चुनौती बन गई है। जहां नॉन-फूड इंफ्लेशन लगातार 11वें महीने 3% के करीब रही, वहीं सितंबर में 9.24% पर पहुंचने के बाद अक्टूबर में फूड इंफ्लेशन 10.87% पर पहुंच गई। यह पिछले साल जुलाई के बाद इसका सबसे ऊंचा स्तर है। दालों के बड़े पैमाने पर आयात के साथ सरकारी मोबाइल वैन से दिल्ली सहित प्रमुख शहरों में कम दाम पर प्याज और टमाटर बेचने के बावजूद यह स्थिति बनी है। सब्जियों की महंगाई दर 42.2% पर पहुंच गई, जो इसका 57 महीनों का ऊंचा स्तर है। खाद्य तेलों के दाम भी उछल गए। वैश्विक स्तर पर कीमतें बढ़ने के साथ आयात शुल्क बढ़ाने का असर पड़ा। सरकार ने सितंबर में कुछ रिफाइंड वेरायटी पर बेसिक कस्टम्स ड्यूटी 12.5% से बढ़ाकर 32.5% कर दी थी।मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, शहरों में रिटेल फूड इंफ्लेशन 11.09% और गांवों में 10.69% रही। सितंबर में फूड इंफ्लेशन 9.24% और सालभर पहले अक्टूबर में 6.61% थी। फूड इंफ्लेशन 14 महीनों बाद दहाई के आंकड़े में पहुंची है। मंत्रालय ने कहा, ‘अक्टूबर में दालों, अंडों, चीनी और मसालों की महंगाई में काफी कमी देखी गई। ऊंची फूड इंफ्लेशन के पीछे मुख्य रूप से सब्जियों, फलों और तेलों के दाम बढ़ने का हाथ रहा।’

क्या कहते हैं जानकार

केयरएज की चीफ इकनॉमिस्ट रजनी सिन्हा ने कहा, ‘फूड इंफ्लेशन को मैनेज करना जरूरी है क्योंकि इसका असर हाउसहोल्ड इंफ्लेशन एक्सपेक्टेशंस पर पड़ता है। सरकार को खाने-पीने की चीजों की महंगाई पर काबू पाने के लिए सप्लाई के मोर्चे पर और कदम उठाने की जरूरत है।’ फूड एंड बेवरेजेज का रिटेल इंफ्लेशन बढ़ाने में बड़ा हाथ रहा, जिसका कंस्यूमर प्राइस इंडेक्स में 45.86% हिस्सा है। फूड एंड बेवरेजेज की इंफ्लेशन अक्टूबर में 9.69% रही, जो सितंबर में 8.36% थी। फलों में महंगाई दर 8.43% पर पहुंच गई, जो सितंबर में 7.65% पर थी। अनाज में महंगाई 6.94% और मीट-मछली में 3.17% रही। वहीं, मसालों के दाम 7% नीचे आए। दालों में महंगाई 7.4% रही। खाद्य तेलों के दाम 9.5% बढ़े।सब्जियों में खासतौर से टमाटर और प्याज के दाम ज्यादा बढ़े। देश के कुछ इलाकों में बेमौसम बारिश का इसमें बड़ा हाथ रहा। वहीं, वैश्विक स्तर पर खाद्य तेलों के दाम सालभर पहले के मुकाबले 27% बढ़े। इस बीच, 14 सितंबर को सरकार ने तिलहन किसानों के हितों का हवाला देकर खाद्य तेलों पर बेसिक कस्टम्स ड्यूटी बढ़ा दी थी। इसका असर एडिबल ऑयल इंफ्लेशन पर पड़ा।

सब्जियों की कीमत

ICRA की चीफ इकनॉमिस्ट अदिति नायर ने कहा, ‘सितंबर में 36% से बढ़कर वेजिटेबल इंफ्लेशन अक्टूबर में 42.2% के साथ 57 महीनों के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। इसका असर फूड एंड बेवरेजेज सेगमेंट और ओवरऑल रिटेल इंफ्लेशन पर पड़ा। रिटेल इंफ्लेशन के 14 महीनों के ऊंचे स्तर पर पहुंचने में फूड एंड बेवरेजेज सेगमेंट में इंफ्लेशन बढ़ने का बड़ा हाथ रहा। 12 फूड ग्रुप्स में से 7 में इंफ्लेशन बढ़ी। सब्जियों को हटा दें तो फूड एंड बेवरेजेज इंफ्लेशन 4.3% पर और रिटेल इंफ्लेशन 3.6% पर आ जाएगी।’फूड एंड बेवरेजेज, फ्यूल एंड लाइ और पेट्रोल-डीजल को हटाने के बाद दिखने वाली कोर इंफ्लेशन अक्टूबर में कुछ बढ़ी, लेकिन लगातार 11वें महीने 4% से नीचे रही। वहीं, फ्यूल इंफ्लेशन लगातार 14वें महीने नेगेटिव जोन में बनी रही। क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट डी के जोशी ने कहा, ‘नॉन-फूड इंफ्लेशन 3 प्रतिशत के करीब बनी हुई है, लेकिन फूड इंफ्लेशन बार-बार बढ़ने के चलते रिटेल इंफ्लेशन ज्यादा बनी हुई है। इसे देखते हुए दिसंबर में आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी रीपो रेट जस का तस बनाए रख सकती है।’

तेल की कीमत

प्रभुदास लीलाधर के इकनॉमिस्ट अर्श मोगरे ने कहा, ‘ग्लोबल फैक्टर्स से चुनौती बनी हुई है। ब्रेंट क्रूड 72 डॉलर प्रति बैरल के आसपस हैं, लेकिन इंपोर्टेड इंफ्लेशन का रिस्क बरकरार है, खासतौर से पश्चिम एशिया में तनाव और रेड सी इलाकों में मुश्किलों की वजह से।’ ICRA की चीफ इकनॉमिस्ट अदिति नायर ने कहा, ‘CPI इंफ्लेशन ने अक्टूबर में 6% का दायरा पार कर लिया है। इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में यह आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के अनुमान से 60-70 बेसिस पॉइंट्स अधिक रह सकती है। दिसंबर की एमपीसी मीटिंग में रेट घटाए जाने की गुंजाइश नहीं है। अब अगले साल फरवरी में या उसके बाद 50 बेसिस पॉइंट्स के रेट कट साइकल की शुरुआत हो सकती है।’केयरएज की चीफ इकनॉमिस्ट रजनी सिन्हा ने कहा, ‘मौजूदा ट्रेंड से लग रहा है कि वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में इंफ्लेशन आरबीआई के अक्टूबर में दिए गए अनुमान से आगे निकल सकती है। दिसंबर में रेपो रेट जस का तस रह सकता है। फूड इंफ्लेशन घटने पर फरवरी मीटिंग में 25 बेसिस पॉइंट्स का रेट कट हो सकता है।’

लगाना होगा जोर, सुधर सकते हैं हालात

खरीफ सीजन की फसल आने से खाने-पीने की चीजों की महंगाई घटने की उम्मीद है। रबी सीजन में अच्छी बुआई का अनुमान है। ग्लोबल कमोडिटी प्राइसेज में नरमी से भी मदद मिलेगी। हालांकि पश्चिम एशिया में संघर्ष बढ़ा तो ग्लोबल कमोडिटी मार्केट्स और सप्लाई चेन पर बड़ा असर पड़ सकता है। इस बीच, सरकार सब्जियों और दूसरी जरूरी चीजों की सप्लाई बढ़ाने पर जोर लगा रही है, जिससे स्थिति सुधर सकती है।


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