Sunday, September 24, 2023

'मैं इच्छा मृत्यु चाहती हूं, मेरी मदद कर दीजिए प्लीज', नौकरी से निकाली गई डीयू की प्रोफेसर का वायरल पोस्ट रुला देगा

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती काॅलेज की पूर्व. प्रोफेसर डाॅ. पार्वती इच्छा मृत्यु मांग रहीं हैं। डीयू की नेत्रहीन शिक्षिका रही पीएचडी स्कॉलर पार्वती कुमारी का कहना है 'अब मृत्यु से सुंदर कुछ भी नहीं है, मुझे इच्छा मृत्यु दी जाए। नौकरी जाने के बाद पार्वती ने ये बातें कहीं। उन्होंने कहा, 'दसवीं कक्षा में आंखों की रोशनी जाने के बाद मैने ब्रेल लिपि से 12वीं की। डीयू आईपी कॉलेज से ग्रेजुएशन, दौलत राम कॉलेज से एम.ए, जेएनयू से एमफिल और पीएचडी किया। मेरा जेआरएफ सामान्य श्रेणी में है। लेकिन आज मुझे नौकरी से हटाकर एक सामान्य एम.ए और नेट पास किए नए छात्र से रिप्लेस कर दिया गया। यह मेरी हत्या ही तो है, केवल हत्या।' पार्वती की पुस्तक वाणी प्रकाशन से प्रकाशित है। एक कहानी संग्रह है। इसके अलावा उनके बहुत सारे लेख हैं जो हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपे हैं।दिल्ली विश्वविद्यालय की इस पूर्व शिक्षा का कहना है, 'मेरे जीवन की रोशनी यह तदर्थ की नौकरी थी। केवल महाभारत में ही चीर-हरण नहीं हुआ था, आज भी अट्टहास के साथ मेरे साथ हुआ है। मेरी नौकरी मुझसे छीन ली गई। जीवन में अंधापन फिर से गहरा हो गया है। आत्महत्या करने का विचार तो कई बार आया, लेकिन मैं इच्छामृत्यु चाहती हूं, मेरी मदद कर दीजिए प्लीज़।'

इन लोगों की गई नौकरी

दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब के मुताबिक सत्यवती कालेज सांध्य में कुल 11 शिक्षक पढ़ा रहे थे। कुल सीट 16 थी। इनमें 6 लोगों को बाहर निकाल दिया गया, मात्र 5 को ही रखा गया। निकाले गए शिक्षक और उनका अनुभव इस प्रकार है- डॉक्टर मंजुल कुमार सिंह - अनुभव 23 साल, डॉक्टर विनय झा - अनुभव 12 साल, डॉक्टर संजीत कुमार - अनुभव 14 साल, डॉक्टर सच्ची -10 साल शिक्षक का अनुभव, डॉक्टर पार्वती कुमारी नेत्रहीन व शिक्षक का 9 साल का अनुभव, डॉक्टर अरमान अंसारी 10 साल शैक्षणिक अनुभव। प्रोफेसर आभा देव का कहना है कि यदि सबको समायोजित कर लिया जाता तब भीे 5 सीट बच जाती, आका लोग जिसको चाहते दे सकते थे। लेकिन लालच और सत्ता का दंभ कोई सीमा नहीं जनता।

'अब जिंदा लाश के शक्ल में तब्दील हो चुकी हूं'

पार्वती कुमारी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्टर लिखा है जिसमें उन्होंने कहा कि 'भारत के हर नागरिक से अपील करती हूं कि मैं ही हूं पार्वती। अब जिंदा लाश के शक्ल में तब्दील हो चुकी हूं। सत्यवती कॉलेज, सांध्य से निकाले जाने के बाद क्षण क्षण मर रही हूं। अब चाहती हूं कि सदैव के लिए मेरी यह पीड़ा खत्म हो जाए। ईश्वर ने आंख की रोशनी छीनी, तो लगा कि किसी तरह पार घाट उतर जाऊंगी। मुझे क्या पता था कि बौद्धिकों के समाज में भी मेरी जैसी अभागन की आत्मा को भी चाकू से रौंदकर लहूलुहान कर दिया जाएगा। मैं घबराई हुई हूं। ऐसा लगता कि मैं दुबारा अंधी हो गई हूं। दृष्टिहीन आंखों में गरम तेल डाल दिया गया हो। हे ईश्वर, तुम्हारा न्याय कहां गया, कुछ तो हमपर दया करो।' पार्वती का कहना है, 'अंधों के संघर्ष को आप नहीं जानते। जीवन के हर मोड़ पर मैं जूझती हूं। हमारी सारी इच्छाओं का दमन तो ईश्वर ने कर ही दिया था, इस घटना ने मानवता को शर्मशार कर दिया। आपको एक बात बताती हूं। हमारा समाज दिव्यांगों के प्रति संवेदनशील नहीं है। पुरुष के अंधेपन और महिला के अंधेपन में भी अंतर है। हम पर दोहरी मार पड़ती है। पुरुष को समाज में विशेषाधिकार प्राप्त है लेकिन महिला को?'


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